Shodashi for Dummies
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हरिप्रियानुजां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥
एकस्मिन्नणिमादिभिर्विलसितं भूमी-गृहे सिद्धिभिः
ध्यानाद्यैरष्टभिश्च प्रशमितकलुषा योगिनः पर्णभक्षाः ।
Charitable functions which include donating food and clothes for the needy are integral on the worship of Goddess Lalita, reflecting the compassionate facet of the divine.
क्लीं त्रिपुरादेवि विद्महे कामेश्वरि धीमहि। तन्नः क्लिन्ने प्रचोदयात्॥
The Mahavidya Shodashi Mantra can be a robust Instrument for people in search of harmony in individual interactions, creative inspiration, and advice in spiritual pursuits. Typical chanting fosters emotional healing, enhances instinct, and helps devotees access larger wisdom.
पुष्पाधिवास विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि
॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥
Devotees of Shodashi interact in several spiritual disciplines that intention to harmonize the thoughts and senses, aligning them Together with the divine consciousness. The following factors outline the progression toward Moksha by means of devotion to Shodashi:
लक्ष्या या चक्रराजे नवपुरलसिते योगिनीवृन्दगुप्ते
श्रौतस्मार्तक्रियाणामविकलफलदा भालनेत्रस्य दाराः ।
केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥
इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय website हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।